Monday, June 8, 2020

साथियों ,मैने 2007-08 से ही सूचना क्रांति का उपयोग करते हुए देश विदेश में बहेलिया समाज को Facebook ग्रूप और Blog पेज के माध्यम से सबको इकठ्ठा कर एक मंच पर लाने का प्रयास किया,जिसमें मैं शुरूआती चरण में काफी सफल भी रहा।
साथियों,
मैं *इतिहास के विशेषज्ञ* होने के नाते उसी समय अपना *blog* बनाकर बहेलिया समाज के इतिहास को इकट्ठा करने का प्रयास किया था ,जब कि ऐसी सूचनायें उस समय एक मंच पर उपलब्ध भी नही थी।
इस ब्लाग के जरिये आप नई पीढ़ी के लोग आधा अधूरा ही सही अपना भूतकाल जानकर आप अपना वर्तमान और भविष्य को सभी मिलकर सुंदर बना सकते है।

यदि आप सभी blog पर जाकर अपने इतिहास का गहराई से अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि हमारे पुरखे राजपूतो के समान ही बुद्धिमान और साहसी रहे है।जिसके कारण उस समय हमने मुगल और अग्रेजों की उच्च पदों पर रहकर सेवा की थी।

इसीलिए आज मुझे लगता है कि अब हम सभी शिक्षित और जागरूक वर्ग को आगे आकर समाज को पुन: शिखर तक ले जाने के लिए मिलकर प्रयास करना चाहिए ।

🙏🙏

baheliya.blogspot.com

*आजाद*

Tuesday, April 2, 2013

शिक्षा व्यवस्था और दलित समाज


 

 
 
दलित बच्चे
दलितों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है पर शिक्षण संस्थानों में अभी भी अनुपात में इनकी तादाद कम है
आज़ादी से पहले की सामाजिक स्थिति ऐसी थी कि दलित समाज के लोगों को शिक्षा का अधिकार नहीं था. इसके बाद अंग्रेज़ों के शासनकाल में स्थितियाँ कुछ बदलीं और एक मुक्त शिक्षा व्यवस्था लागू हुई. इससे कुछ लोगों को लाभ मिला था.
आज़ादी के बाद इस बात को स्वीकार किया गया और इस दिशा में नीति बनाने की ज़रूरत भी महसूस की गई.
दो तरह की शिक्षा नीति बनाई गईं. एक तो इस बात पर आधारित थी कि इतिहास में जो वर्ग शिक्षा से वंचित रहे हैं उन्हें आरक्षण के माध्यम से मुख्यधारा में आने का अवसर दिया जाए. इसे उनकी जनसंख्या के आधार पर तय किया गया.
दूसरी तरह की नीति के तहत ग़रीब और पीछे छूटे हुए लोगों के लिए छात्रवृत्ति, किताबें और अन्य रूपों में आर्थिक मदद जैसी व्यवस्था की गई.
यह भी देखा गया कि कई बच्चे प्राथमिक शिक्षा के बाद आर्थिक चुनौतियों के कारण शिक्षा से अलग हो जा रहे हैं और माध्यमिक और उच्च शिक्षा से वंचित रह जा रहे हैं. इसके लिए उन्हें छात्रावासों की और छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की गई.
कोई भी राजनीतिक दल हो, सभी ने दलितों की शिक्षा को महत्व दिया है.
चिंता
इस तरह के प्रयासों की वजह से हम पाते हैं कि शिक्षा का ग्राफ तेज़ी से ऊपर गया है पर जनसंख्या के अनुपात से देखें तो अभी भी दलितों का साक्षरता प्रतिशत औरों की अपेक्षा कम है.
 उच्च शिक्षा में भी देखें तो दलितों के वहाँ पहुँचने में कई गुना प्रगति हुई है पर फिर भी इस बात से मैं सहमत हूँ कि कई तरह की सुविधाओं के होने के बावजूद आईआईटी और आईआईएम या उच्च शिक्षा में उनका प्रतिनिधित्व उतना नहीं है जितना कि होना चाहिए था
 

ऐसा ही उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने वाले छात्रों में भी देखने को मिलता है. वहाँ प्रवेश दर 10 प्रतिशत है पर अनुसूचित जातियों के लिए पाँच प्रतिशत ही देखने को मिल रहा है.
इसकी एक वजह नीतियों के लागू होने को लेकर भी है पर यह केवल शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं है बल्कि सभी क्षेत्रों में नीतियों के लागू होने को लेकर कुछ चुनौतियाँ और कुछ खामियाँ हैं.
बल्कि शिक्षा को बाकी नीतियों की तुलना में देखें तो यहाँ लागू करने की समस्या कुछ कम हैं.
आजादी के बाद शिक्षा में आरक्षण की नीति के कारण उच्च शिक्षा में भी देखें तो दलितों के वहाँ पहुँचने में कुछ तो प्रगति हुई है पर फिर भी इस बात से मैं सहमत हूँ कि कई तरह की सुविधाओं के होने के बावजूद आईआईटी और आईआईएम या उच्च शिक्षा में उनका प्रतिनिधित्व उतना नहीं है जितना कि होना चाहिए था.
इसकी वजह ग़रीबी, सामाजिक विभेद, आर्थिक चुनौतियाँ और घर का माहौल भी हैं. इसकी वजह से और वर्गों की तुलना में इस वर्ग से एक छोटा सा तबका ही उच्च शिक्षा में जा पाता है.
उच्च वर्गों से ज़्यादा तादाद इसलिए है क्योंकि उन्हें सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा इसकी एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है जिसका उन्हें लाभ मिलता आया है.
सुधार की दरकार
मेरी अपनी राय है कि शिक्षा नीति को और प्रभावी बनाने के लिए कोठारी आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए. सामान्य शिक्षा की व्यवस्था लागू हो. गुणवत्ता के स्तर पर सभी को एक जैसी शिक्षा उपलब्ध कराया जाए. कोठारी आयोग ने इस पर काफी बल दिया था.
दलित बच्चा
कई दलित परिवारों के बच्चे अभी भी मैट्रिक के बाद की पढ़ाई नहीं कर पाते हैं
आप देखें कि जो केंद्रिय कर्मचारियों के बच्चों के लिए केंद्रीय विद्यालय हैं. जो सैनिकों के बच्चों के लिए सैनिक स्कूल हैं, गांव में जो मेरिट वाले बच्चे हैं उनके लिए नवोदय स्कूल हैं, और सामान्य बच्चों के लिए नगर निगम के स्कूल हैं. प्राइवेट की तो बात ही नहीं कर सकते, उनमें अंतरराष्ट्रीय मानकों तक के आधार पर पढ़ाई हो रही है.
इससे एक तरह की असमानता हम लोगों ने ही पैदा कर दी है. समाज का एक विशेष आर्थिक पहुँच वाला व्यक्ति ही अपने बच्चों को यह शिक्षा दे पा रहा है और बाकी के लिए सरकारी पाठशालाएं हैं.
हम अच्छे स्कूलों को ख़त्म न करें पर आम लोगों के लिए उपलब्ध शिक्षा व्यवस्था में अध्यापक से लेकर सामग्री तक सुधार तो लाएं ताकि ग़रीब तबका और दलित समाज के बच्चे औरों के सामने खड़े तो हो सकें.
उच्च शिक्षा में गुणवत्ता सुधारने की ज़रूरत भी है और सरकार को इसका अहसास भी है.
ऐतिहासिक कारणों से पिछड़े वर्ग जैसे आदिवासी, दलित, महिलाएं, अल्पसंख्यक और फिर ग़रीब व्यक्ति, इन सभी को शिक्षा में समान अधिकार दिए जाने की ज़रूरत है. जिन दलित की स्थिति सुधरी है उन्हें भी शिक्षा में समान अधिकार तो मिलने चाहिए पर आर्थिक सहूलियतें उन्हें ही देनी चाहिए जो कि ग़रीब हैं.
मूल्य आधारित शिक्षा
एक बात जो सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, वह है मूल्य आधारित शिक्षा की. मैं देख रहा हूँ कि औपचारिक शिक्षा तो छात्रों को मिल जाती है पर नैतिक और सामाजिक शिक्षा नहीं मिल पा रही है.
 चाहे कोई किसी भी विषय का विद्यार्थी हो, उसे यह मालूम होना चाहिए कि हमारी समस्या क्या है. वो ग़रीबी की हो, वो लिंग आधारित विभेद की हो, वो जाति की हो, शोषण और बहिष्कार की हो, उसे इनका एहसास होना चाहिए
 

आरक्षण और सांप्रदायिकता जैसे मुद्दों को वैज्ञानिक तरीके से देखने की ज़रूरत होती है पर वो नहीं हो पा रहा है. इन मुद्दों पर होने वाली प्रतिक्रिया अक्सर विपरीत होती है.
प्रत्येक विद्यार्थी चाहे किसी भी विषय का हो, उसे यह मालूम होना चाहिए कि हमारे समाज की मूलभूत समस्याएँ, ग़रीबी, लिंग आधारित विभेद, जाति विभेद, शोषण और बहिष्कार जैसी समस्याओं का उन्हें एहसास होना चाहिए.
अगर सामाजिक व्यवस्था की इन सच्चाइयों का अहसास हम उन्हें करा देते हैं तो इन समस्याओं की ओर देखने का या उन्हें नज़रअंदाज़ करने के नजरिए में बदलाव आएगा.
वैचारिक मतभेद हो सकते हैं पर इनपर वे सकारात्मक रूप से सोच सकेंगे समस्या तो यह है कि आज के शिक्षितों में से कई लोगों को समाज और देश की समस्याओं की समझ ही नहीं है.
हम देखते हैं कि आज भी समाज के शिक्षित वर्ग में समाज और देश की समस्याओं को समझने की सकारात्मक दृष्टि का अभाव है.
शिक्षा के समान अवसर, आर्थिक सुरक्षा, मूल्य आधारित शिक्षा, सामाजिक. सांप्रदायिक और लिंग विभेद जैसी समस्याओं से अवगत कराने वाली शिक्षा-प्रणाली को लागू करने से देश में न केवल शिक्षा के स्तर में सुधार आएगा बल्कि साक्षरता का दर भी बढ़ेगा.
(पाणिनी आनंद से बातचीत पर आधारित)

Sunday, December 18, 2011

Is Great Archer Eklavya belong to Baheliya Community ?


‎" Baheliya Rajput, you are Educate, Agitate and Organize "

‎"you are Educate, Agitate and Organize " 

By education is not mean merely certificates and degrees.
For me to educate means to become aware of ones real life conditions, to be conscious of ones surroundings, to raise objection to the inhuman existence in the society and to ask for change for the better.
“Tell the slaves he is a slave and he will revolt”, that is the real meaning of education.
It is such education that will stir agitation within, leading to what my called “agitate”.
To “agitate” does not mean to organise
guerrilla warfare, to do murda bad – murda bab. On the contrary it means to become aware about ones
social conditions and to seek viable steps for the eradications of the causes of the problems.
I tell u that only real and true education could only make us to “agitate”. And it is this agitation which is within that would ultimately help us to “organize”.

Thus the real sequence of the slogan is:
Educate, Agitate and Organise.

Baheliya's Forefathers Some Secrets And Moderns Baheliya's community

Baheliya's Forefathers Some Secrets And Moderns Baheliya's community



Trapping of birds was an ancient art that was handed down from father to son. Bahelias were active not only in the jungles, but also in the hills, marshes and riverbeds. Birds were caught both in the day and night. Skill, patience and knowledge of bird life were a hereditary trait of the bahelias. The bird bazaar where Our forefathers sold birds.They provided a variety of birds, both for the pot and for those who were interested in acquiring pets. Lovebirds, the weaverbird and baya, bulbuls, piddis, lals, parrots, mynas, pigeons, partridge and quail were among the many varieties on sale. Pigeons, parrots and partridge are still easily available.
When our forefathers not using a net, then they used
other devices -- a heap of straw or a tree branch to approach the birds at close quarters. Traps were also used, and at night a light to blind the birds which sometimes involved the ringing of a bell to confuse them. The use of glue was also quite common. But more
than anything else it were the skill of the forefathers that helped him to succeed in his daily hunt.

We Want Stop Bird Hunting,We Never Want Bird Hunting Again.
We Never Want To Learn Our Traditional Work Again & We Want To Live With Dignity.
Why the Baheliyas mighty have fallen ?

Why the Baheliya people are in Dalits ? 



When we were once high in the Hindu
caste system and part of a powerful Rajput
army in past.Then suddenly how we lost
our social status. Accornding to many Great Indian history
writers,Baheliya Rajput warriors got a defeat in
the battle field.Then Baheliya Rajput
warriors had to hide in the jungles. Because we had lost our lands & jobs,so
we survived by catching birds and animals
in the jungles.
we forgetten that we were part of powerful
rajputana's and malwa's Army and we were
basically belongs to the warriors. Slowly slowly we adopted bird catching
and bird Selling for our traditional
work.Because all considered inferior
jobs,So we lost our favourable cast status. So Again we need to STOP BIRDS CATCHING
& STOP BIRD SELLING for again upliften of
our social status. we should left our traditional work & we
should join in Army,Civil
Services,Enggineering.Doctery,Forestry,Bird
& wildlife conservations,Politics & public
sector for feel the pride again.

BAHELIYA DVELOPMENT

 
We also hve children, families!
We also need to eat survive and grow;
Why then no one think about our welfare? Baheliya Dalits Development,
Is possible only through Govts!
Educated Baheliya must join,
Every Govt Services and every Govts!

But our work and labour sustains,
The People their Living and Economy;
Can we paid, at least the money other
kids
Get for playing, on the computers’ keyboards? People suffer because of betrayal by Leaders,
Their own Leaders, exploitation by the Govts,
Corruption by most Clerks, and their Officials;
Affecting every form of Growth, Development. We Baheliya are also People!
Why none talks about our Development?
Neither the Govts Officials Universities nor
Educated amidst our circles, working for others! Baheliya can never Develop in Private Sector!
They may get jobs money and even become Rich Quicker
But they will remain only employees and servants of the rich,
Working for them their wealth and growth, never understanding
Anything about private sector, private employers the way they work,
And their motives, the way they work, or about the private employees!